पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पुनपुन वह स्थान है जहाँ माता सीता ने भगवान राम के पितरों का तर्पण और पिंडदान किया था।
जब श्रीराम पितृपक्ष में गया आए थे, तो उन्हें कुछ समय के लिए वहाँ रुकना पड़ा। उस समय श्रीराम कहीं बाहर गए हुए थे, और उस दौरान माता सीता ने अकेले ही पिंडदान कर दिया।
फल्गु नदी (Phalgu River) बिहार के गया शहर में स्थित एक पवित्र नदी है, जो पिंडदान और श्राद्ध कर्मों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
आज भी लोग रेत हटाकर जल निकालते हैं और तर्पण-पिंडदान करते हैं। इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण, विष्णु पुराण, और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी मिलता है।
क्रम | वेदियाँ | क्रम | वेदियाँ | क्रम | वेदियाँ |
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1 | Pun‑Pun | 2 | Falgu River | 3 | Brahma Kund |
4 | Prethshilla | 5 | Ramshilla | 6 | Ram Kund |
7 | KagBali | 8 | Uttarmanas | 9 | Udichi |
10 | Kankhal | 11 | Dakhin Manas | 12 | Jiwha Loll |
13 | Gajadhar Jee | 14 | Sarswati | 15 | Dharmaranya |
16 | BodhGaya | 17 | Brahma Sarower | 18 | Kaakbali |
19 | Amrasichen | 20 | Rudrapada | 21 | Brahmapada |
22 | Vishnupada | 23 | Kartikpada | 24 | Dhadikhagni |
25 | Garpashagni | 26 | Ahabaniya Agni | 27 | Suryapada |
28 | Chandrapada | 29 | Ganeshpada | 30 | Sandyagnipada |
31 | Yagnipada | 32 | Dadhichipada | 33 | Kanna Pada |
34 | Mat Gowapi | 35 | Ko Pada | 36 | Agastha pada |
37 | Indrapada | 38 | Kahsyapada | 39 | Gajakaran |
40 | Ram‑Gaya | 41 | Sita Kund | 42 | Gayasir |
43 | Gayakup | 44 | Mund Pristha | 45 | Adi Gaya |
46 | Dhout Pada | 47 | Bhim Gaya | 48 | Go Prachar |
49 | Gada Loll | 50 | Dud Tarpan | 51 | Baitarni |
52 | AkshayBat | 53 | Gayatri Ghat |
भारत की धार्मिक नगरी गया जी में पिंडदान का अत्यंत पौराणिक महत्व है। विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी, पुनपुन, ब्रह्मा कुंड, प्रेतशिला जैसे प्रमुख स्थल यहाँ पिंडदान के लिए प्रसिद्ध हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार पुनपुन वही स्थल है जहाँ माता सीता ने भगवान राम के पितरों का पिंडदान किया। सीता जी ने अपने संकल्पबल से यह सिद्ध किया कि स्त्रियाँ भी पिंडदान कर सकती हैं।
फल्गु नदी गया शहर के मध्य बहती है। माता सीता द्वारा यहीं पिंडदान करने के बाद उसे श्राप दिया गया कि बाहर से सूखी और भीतर से जलयुक्त रहेगी। आज भी रेत हटाकर तर्पण किया जाता है।
यह वह स्थल है जहाँ भगवान ब्रह्मा ने स्वयं पिंडदान की परंपरा शुरू की थी। स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में इसका उल्लेख आता है।
यह स्थल अकाल मृत्यु, प्रेत योनि और अज्ञात पितरों के पिंडदान के लिए प्रमुख माना जाता है। गया से 8-10 KM दूर स्थित यह पर्वत आत्माओं को शांति प्रदान करता है।
यह वही पवित्र कुंड है जहाँ श्रीराम ने अपने पिता दशरथ जी का पिंडदान करने के बाद स्नान और तर्पण किया था।
कागबलि में कौए को पिंड अर्पित किया जाता है, जिसे पितरों का प्रतीक माना जाता है। कौआ पिंड स्वीकार करे तो श्राद्ध पूर्ण माना जाता है।
उत्तरमानस वेदी पितरों की गति के लिए उत्तर दिशा में पिंड अर्पण का प्रतीक है। वहीं उदीचि वेदी मोक्ष की ऊर्ध्व गति का संकेत देती है।
यम दिशा में पिंड अर्पण कर आत्माओं को प्रेत योनि से मुक्ति देने का स्थान।
भूख-प्यास की तृष्णा में अटके पितरों की तृप्ति हेतु यह वेदी प्रसिद्ध है। यहाँ पिंडदान से आत्मा भोग बंधन से मुक्त होती है।
यह स्थल पितरों को शक्ति, सुरक्षा और रक्षा का आशीर्वाद प्रदान करने वाला माना जाता है।
गया जी में कुल 54 प्रमुख पिंड वेदियाँ हैं। यहाँ पिंडदान कर पितरों को मोक्ष और परिवार को सुख-समृद्धि मिलती है।
पितरों की आत्मा को शांति
परिवार में सुख-समृद्धि
आध्यात्मिक उन्नति